1. राखीगढ़ी :
यह पुरास्थल हरियाणा राज्य के हिसार जिले के नारनौंद खंड में स्थित है। मोहनजोदड़ो के बाद हड़प्पा सभ्यता का यह दूसरा बड़ा पुरास्थल है। यह ऋग्वेदिक दृषद्वती नदी के दाएं तट पर स्थित है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के पुरातत्वविद डॉ.अमरेंद्र नाथ ने यहां सन 1997 ने उत्खनन आरंभ किया था जो कई सत्रों में सन 2000 तक चला। इस उत्खनन में प्रारंभिक हड़प्पा (Early Harappan) तथा परिपक्व हड़प्पा (Mature Harappan) सभ्यता के प्रमाण उपलब्ध हुए थे। उत्खनन में घरों के अलावा मृदभांड तथा विशिष्ट पत्थर से बने हुए आभूषण भी मिले थे।
2. फरमाणा खास (दक्ष-खेड़ा) :
यह गांव जिला
रोहतक की तहसील महम नगर से उत्तर-पूर्व दिशा में करीब 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गांव की आबादी के पश्चिम में करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर
सामाना गांव की ओर से जाने वाले मार्ग के सनिकट एक प्राचीन बस्ती के अवशेष खोज निकाले गए हैं। स्थानीय लोग इस स्थान को दक्ष-खेड़ा नाम से पुकारते रहे हैं। हरियाणा में ज्ञात पूरा स्थलों में
राखीगढ़ी के बाद यह
दूसरा सबसे बड़ा पुरास्थल है। यहां से
सेलखेड़ी से बनी 4 हड़प्पाकालीन
मोहरे भी प्राप्त हुई हैं। यहां से
हड़प्पा सभ्यता कालीन
कब्रिस्तान भी मिला है जिसका विस्तार करीब 5 एकड़ भूमि में है। कब्रों में नरकंकालों के साथ रखे गए अनेक आकार-प्रकार के मृदभांड भी मिले हैं।
4. मिताथल :
मिताथल गांव जिला
भिवानी में मुख्यालय से उत्तर दिशा में स्थित है।
डॉ. सूरजभान ने
वर्ष 1967-68 में इस पुरास्थल का निरीक्षण करने के उपरांत उत्खनन किया था जहां उन्हें परंपरिक हड़प्पा संस्कृति, हड़प्पा सभ्यता तथा उत्तर हड़प्पा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए थे। इस पुरास्थल से वर्ष 1915-16 मे गुप्त तथा कुषाण कालीन सोने के सिक्के भी प्राप्त हुए थे। इसके अलावा
सन 1965 में टीले के पास नहर खोदते समय तांबे के 13 छल्ले तथा दो भाले (harpoon) भी प्राप्त हुए थे।
5. कुणाल :
यह पुरास्थल फतेहाबाद जिले के रतिया नामक स्थान पर स्थित है। यहां से हांकड़ा संस्कृति, परम भी हड़प्पा संस्कृति और हड़प्पा सभ्यताओं के प्रमाण मिले हैं। यहां से काफी संख्या में सोने और चांदी के आभूषण भी प्राप्त हुए हैं।
यह पुरास्थल ऋग्वेदिक सरस्वती के दाएं तट पर स्थित है।
6. भिंडडाणा :
यह गांव फरीदाबाद जिले के उत्तर-पूर्वी दिशा में स्थित है। एल.एस.राव के नेतृत्व में वर्ष 2003-2004 में उत्खनन किया गया था जो तीन स्त्राओं में चलकर वर्ष 2005-2006 में संपन्न हुआ। यह पुरास्थल भी ऋग्वेदिक सरस्वती नदी के बाएं तट पर स्थित है। उत्खनन के दौरान यहां से हकड़ा, संस्कृति, आरंभिक हड़प्पा संस्कृति तथा हड़प्पा सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए थे।
7. गिरावड :
यह गांव जिला रोहतक की महक तहसील व खंड में राजमार्ग संख्या-10 पर बसे मदीना गांव से उत्तर दिशा में करीब 2.5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इस स्थान की खोज सन 2006 में महाऋषि दयानंद विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के शोधार्थी विवेक दागी ने की थी। सन 2007 में डॉ. वसंत शिंदे (दखन कॉलेज, पुणे) प्रोफेसर मनमोहन कुमार (इतिहास विभाग, महाऋषि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक) और प्रोफेसर तोशिकी ओसादा (क्योटो, जपान) के संयुक्त नेतृत्व में इसका उत्खनन हुआ था। यहां 5X5X5 मीटर की कुल 41 खाइया (trench) खोदी गई। उत्खनन में केवल हाकड़ा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं उत्खनन केे दौरानयहां से 13 गर्त निवास प्राप्त हुए। यहां मृदभांड पकाने के लिए दो भटियां भी प्राप्त हुई हैं।
8. बालू :
बालू गांव जिला कैथल में कैथल नगर से 20 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित है। इस स्थल की खोज सन 1977 में डॉ. सूरजभान तथा डॉ. जिम जे. शेफर (अमेरिका) ने की थी। इस पूरा सल पर उत्खनन कार्य डॉ. उदयवीर सिंह तथा डॉ. सूरजभान ने सन 1979 में आरंभ भी किया था जो लगभग 15 स्त्रहो तक चला। यहां से प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति, हड़प्पा सभ्यता और उत्तर हड़प्पा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
9. भगवानपुरा :
भगवानपुरा गांव जिला कुरुक्षेत्र में स्थित है। उत्खनन में यहां से उत्तर हड़प्पा संस्कृति तथा चित्रित धूसर मृदभांड (पेंटिड ग्रे-वेयर) संस्कृति के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
10. मदीना :
यह गांव जिला रोहतक के महम खंड में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-10 पर रोहतक नगर से लगभग 18 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में स्थित है। इसका उत्खनन सन 2007-2008 में डॉ. मनमोहन कुमार के नेतृत्व में किया गया। उत्खनन के दौरान भगवानपुरा की तरह उत्तराखंड हड़प्पा संस्कृति तथा चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति के लोगों के साथ साथ रहने के प्रमाण मिले हैं।
11. सीसवाल :
सीसवाल (तहसील आदमपुर) हिसार से 26 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में चोतंग नहर पर एक गांव है। यहां की पुरानी थेह (300 X 200 मीटर) से सर्वाधिक प्राचीन संस्कृति के संकेत मिले हैं।
मिट्टी के बर्तन तथा ठिकरे अधिक मात्रा में हैं। इनमें से काफी बर्तन हाथ से बने हुए हैं। सीसवाल सभ्यता के जनको को पहले चाक के विषय में जानकारी नहीं थी। यह सब बर्तन-भांडे कालीबंगा (राजस्थान) के स्थान से मिली समग्री से एकदम मिलते-जुलते हैं। इनमें कुछ मिट्टी के चित्रित चूड़ियां तथा मनके आदि हैं। एक तांबे के हत्थे वाले गंडासे की आकृति की एक वस्तु भी प्राप्त हुई है। खेतड़ी (राजस्थान) की तांबे की खानों की समीपता से यहां तांबे का प्रयोग होने लग गया था।
बनावली के उत्खनन से सीसवाली लोगों के बसने के तौर-तरीकों के विषय में भी जानकारी प्राप्त हुई है। उनके घर मिट्टी की कच्ची इंटर से बनी है। सीसवाली लोग तांबे और कांसे का प्रयोग करते थे। पंजाब विश्वविद्यालय के तत्वावधान में डॉ. सूरजभान द्वारा खुदाई की गई।
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