महाभारत का युद्ध हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र जिले में कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में शांतनु एक प्रमुख पात्र हैं। वे हस्तिनापुर के महाराजा प्रताप के पुत्र थे। उनका विवाह गंगा से हुआ था, जिससे उनका देवव्रत(भीष्म) नाम का पुत्र हुआ। शांतनु का दूसरा विवाह निषाद कन्या सत्यवती से हुआ था। सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र थे।
शांतनु राजा ने गंगा से शादी की थी, गंगा ने शांतनु से शादी करने से पहले कुछ शर्ते रखी। गंगा ने कहा कि आप मुझे कभी भी किसी भी काम के लिए नहीं रुकोगे, और ना ही मुझसे कोई सवाल करोगे। राजा शांतनु ने शादी के लिए शर्तों को स्वीकार कर लिया और गंगा से शादी कर ली। राजा शांतनु के लगातार सात पुत्र गंगा ने गंगा नदी में बहा दिए। और जब वह आठवें पुत्र को बहाने के लिए ले जा रही थी तो शांतनु ने उन्हें रोक दिया।
गंगा ने पहले ही शांतनु को शर्त में कहा था कि आप मुझे नहीं रुकोगे पर शांतनु के रोकने के कारण गंगा शांतनु को छोड़कर चली गई और देवव्रत जो कि उनका पुत्र था उसको भी अपने साथ ले गई। देवव्रत का नाम ही बाद में भीष्म रखा गया था।
फिर शांतनु ने सत्यवती से शादी कर ली थी। उसके दो पुत्र हुए चित्रागढ़ बड़ा बेटा तथा विचित्रवीर्य छोटा बेटा था। शांतनु के दूसरे पुत्र चित्रांग ने गंधरवों पर आक्रमण किया और उनको हरा दिया था। विचित्रवीर्य के दो पुत्र हुए धृतराष्ट्र और पांडू।
धृतराष्ट्र के जन्म से ही अंधे होने के कारण माना जाता है कि राजगद्दी पर पांडु को बिठाया गया था, धृतराष्ट्र की शादी गांधारी से हुई थी, पांडू की शादी कुंती वह माधुरी से हुई थी, कौरवों की माता का नाम गांधारी था। धृतराष्ट्र के अंधे होने के कारण गांधारी ने भी विवाह से पहले ही अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। इसने अपनी आंखों से दो बार पट्टी खोली थी और कौरवों की बहन का नाम दुशाला था। वह महा ऋषि व्यास की सेवा करती थी। गांधारी कुंती ने दुर्वासा ऋषि की सेवा की थी, दुर्वासा ऋषि ने कुंती को वरदान दिया था कि वह जिस भी देवता को बुलाएगी वह उसको पुत्र देकर जाएगा। सूर्य से सूर्य पुत्र कर्ण, वायु देवता की पूजा से भीम, इंद्र देवता की पूजा से अर्जुन, धर्मराज की पूजा से युधिस्टर पैदा हुए, नकुल, सहदेव भी ऐसे ही पैदा हुए।
युधिष्ठिर ने जुआ खेलते समय अपना राजपाट खो दिया था। कुंती के 6 पुत्र थे। परंतु कुंती ने विवाह से पहले ही सूर्य देव का आवाहन किया तो उससे उसे सूर्यपुत्र कर्ण की प्राप्ति हुई। परंतु लोक लाज के डर से कुंती ने उसे नदी में बहा दिया। और उसके बाद उसका पालन पोषण राधा और अधिरथ ने किया।
द्रोणाचार्य कौरवों तथा पांडवों के गुरु थे। इन्हीं के नाम पर गुरुग्राम शहर का नाम रखा गया था, जिसे द्रोण नगरी के नाम से भी जाना जाता है। द्रोणाचार्य के सहपाठी पंचाल नरेश (ध्रुपद) थे।
दुर्योधन ने कर्ण को अपना मित्र बनाया और उसे अंग राज्य दान में दे दिया। इंद्रदेव ने सूर्यपुत्र कर्ण से कवच और कुंडल दक्षिणा में मांगे थे।
महाभारत का संकलन देवव्यास ऋषि ने किया था और माना जाता है कि इसको शिवपुत्र, श्रीगणेश ने लिखा था। वेदव्यास जी का पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास था। वेदव्यास की माता श्री सत्यवती थी और उनके पिता पराशर ऋषि थे। महाभारत का पुराना नाम जय संहिता था। उस समय इसमें 8800 श्लोक थे। लेकिन एक लाख से अधिक श्लोक होने के बाद ही इसे महाभारत कहा जाने लगा। महाभारत में अध्याय या पर्व 18 हैं। इसमें से छठा पर्व भीष्म पर्व के नाम से भी जाना जाता है इस पर्व में गीता का उपदेश मिलता है।
महाभारत का युद्ध हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में हुआ था। महाभारत का युद्ध एच.एस.एस.सी के अनुसार 900 ईसा पूर्व में लड़ा गया था। महाभारत का युद्ध 18 दिन तक चला था और महाभारत में हरियाणा को बहुधान्यक कहा गया है। इस काल में कृषि युग की शुरुआत हुई थी। महाभारत में अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित था, और परीक्षित का पुत्र जन्मेजय था। राजा परीक्षित की राजधानी इंद्रप्रस्थ (दिल्ली थी और दूसरी राजधानी असंध करनाल को बनाया था)। प्राचीन कथा के अनुसार राजा परीक्षित ने ऋषि का अपमान किया था, उन्होंने तपस्या कर रहे ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया था। उनकी इस गलती के कारण ऋषि के पुत्र ने उन्हें श्राप दे दिया की आने वाले 7 दिन के अंदर उनकी मृत्यु सांप काटने से हो जाएगी। कुछ दिन बाद तक्षक सांप ने राजा परीक्षित को काट लिया था। जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए सरपदमन यज्ञ करवाया था। जिसके बाद इस यज्ञ में आकर सांप गिर कर मरने लगे। यह जमीन सफीदों जींद में स्थित है। जनमेजय ने नागों को हराकर तक्षशिला राजधानी बनाई थी और जन्मेजय की मृत्यु ब्राह्मणों से युद्ध में हो गई थी।
महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और श्री कृष्ण जी ने ज्योतिसर (कुरुक्षेत्र) नामक स्थान पर अर्जुन को बरगद के पेड़ के नीचे गीता का उपदेश दिया था। इस युद्ध में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी भी बने थे। गुरु द्रोणाचार्य के द्वारा रचाई गए चक्रव्यूह में 13 दिन अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु हो जाती है। जिस स्थान पर अभिमन्यु को मारा गया था वह स्थान अमीना गांव में है। लेकिन वर्तमान में इसका नाम बदलकर अभिमन्यु पुर कर दिया गया है। महाभारत में धृतराष्ट्र को युद्ध का वर्णन संजय ने सुनाया था। गुरु द्रोणाचार्य का एक बेटा था उसका नाम अश्वथामा था। (अश्वत्थामा अमर था उसके सर में नागमणि लगी हुई थी जिसके कारण उसे कोई नहीं हरा सकता था। ऐसा माना जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जिंदा है।) भीम ने अश्वत्थामा नामक हाथी को मार दिया था अश्वत्थामा की मृत्यु की खबर सुनकर गुरु द्रोणाचार्य ने अपने हथियार त्याग दिए थे जिसके कारण वे मारे गए। भीष्म पितामह को बाणों की शैया पर अर्जुन ने लेटाया था। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था।उन्होंने मरने से पहले अर्जुन को कहा बेटा मेरे को प्यास लगी है और अर्जुन ने धरती में एक तीर मारा और वहां से एक गंगा की धारा निकली इसलिए इस स्थान को बाणगंगा तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
अर्जुन को भगवान शिव से एक शस्त्र प्राप्त था उसे पाशुपतास्त्र कहा जाता है और युद्ध में हनुमान जी अर्जुन के रथ के ऊपर बैठे थे इसलिए अर्जुन को कपिध्वज के नाम से भी जाना जाता है।
भगवत गीता में अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण के बीच में वार्तालाप है भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश ज्योतिसर नामक स्थान पर कुरुक्षेत्र में दिया था। और अर्जुन को कर्म करने का उपदेश दिया।महाभारत युद्ध के 15 दिन गुरु द्रोणाचार्य मारे गए थे। उस दिन अर्जुन के हाथों सूर्यपुत्र करण वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं। युद्ध के 18 वे दिन शल्य की भी मृत्यु हो जाती है और भीम के हाथों दुर्योधन भी इस युद्ध में मारा जाता है।
महाभारत का युद्ध पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की सहायता से जीता था माना जाता है कि सबसे पहले दुर्योधन की चिता जलाई गई उसके बाद उसके बाकी सभी भाइयों की। दुर्योधन के अलावा उसके 99 भाई और थे। करण का किला थानेसर कुरुक्षेत्र में है। और कर्ण झील करनाल में स्थित है।
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