हरियाणा के प्रमुख लोक नृत्य – Major Folk Dances of Haryana

महिला लोक नृत्य (Female folk Dance) :

खोडिया नृत्य:

यह नृत्य लड़के के विवाह के अवसर पर स्त्रियों द्वारा बरात के प्रस्थान के बाद किया जाता है नववधू के आवागमन तक वर पक्ष की स्त्रियों द्वारा खोडिया नृत्य किया जाता है।

छठी नृत्य:

यह नृत्य बच्चे के जन्म के छठे दिन महिलाओं के द्वारा आयोजित किया जाता है इस नृत्य समारोह में उबले हुए गेहूं और चने बांटने की परंपरा है। 

झूमर नृत्य:

झूमर एक आभूषण है जिसे विवाहित स्त्रियां बड़े चाव से अपने मस्तक पर धारण करती हैं महिलाएं झूमर के आकार में खड़ी होकर नाचती हैं और गाती हैं इस नृत्य में स्त्रियां ओढ़नी दामण परंपरागत हरियाणवी वस्त्र धारण करती हैं।

तीज नृत्य:

यह नृत्य सावन के महीने में तीज के त्यौहार पर आयोजित होता है जिसमें महिलाएं रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधान पहनकर नृत्य करती हैं इस दौरान झूला झूलते हुए लोकगीत भी गाए जाते हैं मधु सरावा के प्राचीन नाम से चर्चित तीज श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

लूर नृत्य:

लूर नृत्य होली से 2 सप्ताह पहले आयोजित किया जाता है इस नृत्य की विशेषता यह है कि महिलाओं द्वारा किए जा रहे इस नृत्य को पुरुषों द्वारा देखना मना है।

मंजीरा नृत्य:

यह नृत्य नगाड़ों डफ और मंजीरा की ध्वनि पर किया जाता है इस नृत्य में महिलाएं और पुरुष दोनों  भाग लेते हैं।   

रास नृत्य:

रास नृत्य का संबंध भगवान श्री कृष्ण की रासलीला से जुड़ा हुआ है इस नृत्य के मुख्यतः दो प्रकार माने जाते हैं।

  1. तांडव नृत्य: यह पुरुष प्रधान नृत्य है ।
  2. लास्यनृत्य: यह स्त्री प्रधान नृत्य है यह नृत्य राज्य के होडल पलवल तथा बल्लभगढ़ आदि इलाकों में बेहद प्रसिद्ध है।

खेड़ा नृत्य:

यह नृत्य खुशी की जगह गम में किया जाता है। यह परिवार में बुजुर्ग की मृत्यु के समय किया वाला नृत्य है

घूमर नृत्य:

घूमर स्त्री नृत्य राजस्थान में तो अत्यंत लोकप्रिय है ही राजस्थान से लगती हरियाणा सीमा के क्षेत्र में भी विशेष प्रचलित है यह नृत्य होली गन्नौर पूजा तीज जैसे त्योहारों पर होता है।

गणगौर नृत्य:

यह नृत्य हरियाणा के हिसार भिवानी तथा सिरसा क्षेत्र में गणगौर उत्सव के अवसर पर आयोजित होता है गणगौर उदयपुर नरेश वीरम दास की रूपवती कन्या थी पिता उसका विवाह बिंदु नरेश ईश्वर सिंह से   करना चाहता था।परंतु अन्य राजा इसमें बाधक थे एक रात राजा ईश्वर सिंह गणगौर हो उदयपुर से भगाकर ले   जाने लगा तो अन्य राजाओं ने पीछा किया। जब ईश्वर सिंह चंबल नदी पार करने लगे तो वह उनका घोड़ा तथा   गणगौर तीनों नदी में डूब गए इस घटना से गणगौर सती स्वीकार की गई और उसकी पूजा होने लगी यह उत्सव   प्रथम क्षेत्र से पूरे 18 दिन मनाया जाता है कुंवारी कन्याए मन चाहे पति प्राप्त करने के लिए और सुहाग ने अखंड   सौभाग्य की कामना से गणगौर की पूजा अर्चना करती हैं।

पुरुष लोक नृत्य (Male folk Dance) :-

गोगा नृत्य:

यह पारंपरिक नृत्य उत्तर भारत के लगभग सभी प्रदेशों उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब हिमाचल प्रदेश   जम्मू कश्मीर राजस्थान में भादो की नवमी को गोगा नवमी के अवसर पर शोभा यात्रा मैं किया जाता है।


घोड़ी बाजा नृत्य:

यह विवाह इत्यादि अवसरों पर पुरुषों द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला नृत्य है इस नृत्य में गते   और रंगीन कागजों से बनाएं घोड़ों के मुखोटे को पुरुष द्वारा पहनकर अभिनय किया जाता है।

डमरू नृत्य:

इस नृत्य में पुरुष हाथों में डमरू लेकर नाचते हैं यह नृत्य पुरुषों द्वारा आयोजित किया जाता है   शिवरात्रि के अवसर पर यह नृत्य विशेष रूप से किया जाता है।

धमाल नृत्य: 

यह विश्वास किया जाता है, कि इस नृत्य को  महाभारत काल से किया जाता रहा है, यह नृत्य पुरुषों   व युवकों मैं मुख्य रूप से प्रचलित हैं।

फाल्गुन नृत्य:

यह नृत्य श्रृंगार तथा वीर रस प्रधान होते हुए ढोल नृत्य के नाम से भी जाना जाता है हरियाणाा में   डफ नृत्य को बसंत ऋतु के आगमन पर किया जाता है। डफ नृत्य पहली बार वर्ष 1969 में गणतंत्र दिवस   समारोह पर किया गया।

चौपाइयां नृत्य:

चार पंक्तियों के गीत पर आधारित यह प्रश्न नृत्य हरियाणा भक्ति परंपरा का प्रतीक है   फरीदाबाद  के ब्रज क्षेत्र में इस नृत्य का विशेष प्रचलन है।   

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