प्रारंभिक जीवन :-
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ा-साँको ठाकुरबारी में हुआ था। उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं। वह अपने माता-पिता के तेरह जीवित बच्चों में सबसे छोटे थे। जब वह छोटे थे, तब उसकी माँ की मृत्यु हो गई, और उसके पिता अक्सर यात्राओं पर रहते थे, उनका पालन-पोषण नौकरों-चाकरों ने किया। टैगोर परिवार ‘बंगाल रेनैस्सा’ में (नवजागरण) के अग्र-स्थान पर था। जहाँ पर वे रहते थे वहां पर अक्सर पत्रिकाओं, थिएटर, बंगाली और पश्चिमी संगीत के लगातार प्रकाशन होते रहते थे। जिसके कारण उनके घर का माहौल किसी स्कूल से कम नहीं था।
उनके सबसे बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ एक दार्शनिक और कवि भी थे। उनके दूसरे भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर भारतीय सिविल सेवा में शामिल होने वाले पहले भारतीय थे। उनके एक अन्य भाई ज्योतिंद्रनाथ एक संगीतकार और नाटककार थे। उनकी बहन स्वर्णकुमारी देवी एक कवयित्री और उपन्यासकार थीं। उनको पारंपरिक शिक्षा प्रणाली अच्छी नहीं लगती थी, इसलिए उन्हें कक्षा में बैठना और पढ़ाई करना भी अच्छा नहीं लगता था।
वह अक्सर अपने परिवार के सदस्यों के साथ परिवार की जागीर पर घूमा करते थे। उनके भाई हेमेन्द्रनाथ उन्हें पढ़ाते थे। अध्ययन में तैराकी, कसरत, जूडो और कुश्ती भी शामिल थे। इसके अलावा उन्होंने ड्राइंग, इतिहास, भूगोल, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी भी सीखी। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वह औपचारिक शिक्षा से इतना परेशान थे कि वे केवल एक दिन कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज गये, उसके बाद दोबारा कभी नही गये थे।
उनके उपनयन संस्कार के बाद, रवीन्द्रनाथ अपने पिता के साथ कई महीनों के लिए भारत के दौरे पर रहे। हिमालय के पर्यटन स्थल डलहौजी पहुंचने से पहले, उन्होंने पारिवारिक संपत्ति, शांतिनिकेतन और अमृतसर का भी दौरा किया। डलहौजी में उन्होंने इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान, संस्कृत, जीवनी का अध्ययन किया और कालिदास की कविताओं पर चर्चा की। इसके बाद, रवींद्रनाथ जोड़ासाँको लौट आए और 1877 तक उन्होंने अपनी कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं की रचना की।
उनके पिता देवेंद्रनाथ उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने वर्ष 1878 में रवींद्रनाथ को इंग्लैंड भेजा। उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में लॉ कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और शेक्सपियर और कुछ दूसरे साहित्यकारों की रचनाओं का स्व-अध्ययन किया। और वे 1880 में कानून की डिग्री के बिना बंगाल लौट आए। वर्ष 1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी से हुआ।
कैरियर :-
रवींद्रनाथ ने अपना अधिकांश समय इंग्लैंड से लौटने के बाद 1901 से सियालदह (जो की वर्तमान में बांग्लादेश में हैं) में अपने परिवार की जागीर में बिताया। वर्ष 1898 में उनके बच्चे और पत्नी भी उनके साथ यहां रहने लगीं। उन्होंने अपनी जागीर में दूर-दूर तक यात्रा की और ग्रामीण और गरीब लोगों के जीवन को बहुत करीब से जाना। 1891 से 1895 तक उन्होंने ग्रामीण बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित कई लघु कथाएँ लिखीं।
वर्ष 1901 में, रवींद्रनाथ शांतिनिकेतन चले गए थे। वह यहां आश्रम स्थापित करना चाहता था। यहां उन्होंने एक स्कूल, पुस्तकालय और पूजा स्थल बनाया। उन्होंने यहां कई पेड़ लगाए और एक सुंदर बगीचा भी बनाया। और इस स्थान पर ही उनकी पत्नी और दो बच्चों की मृत्यु भी हुई। उनके पिता की भी 1905 में मृत्यु हो गई थी। इस समय तक, उन्हें अपनी विरासत में मिली संपत्ति से मासिक आय प्राप्त हो रही थी। उनके साहित्य की रॉयल्टी से भी कुछ आय अर्जित की जा रही थी।
14 नवंबर 1913 को, रवींद्रनाथ टैगोर को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। यह पुरस्कार उन्हें स्वीडिश अकादमी से दिया गया, स्वीडिश अकादमी ने यह पुरुस्कार उन्हें उनके कुछ कार्यों और ‘गीतांजलि’ के अनुवाद के आधार पर पुरस्कार देने का फैसला किया। बाद में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें वर्ष 1915 में नाइटहुड प्रदान किया, जिसे 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद रवींद्रनाथ ने छोड़ दिया था। 1921 में, उन्होंने कृषि अर्थशास्त्री लियोनार्ड एमहर्स्ट के साथ, अपने आश्रम के पास ‘ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान’ की स्थापना की। बाद में इसका नाम बदलकर श्रीनिकेतन कर दिया गया।
अपने जीवन के अंतिम दशक में, टैगोर सामाजिक रूप से बहुत सक्रिय थे। इस दौरान उन्होंने लगभग 15 गद्य और कविताएँ लिखीं। उन्होंने इस दौरान लिखे साहित्य के माध्यम से मानव जीवन के कई पहलुओं को छुआ। इस दौरान उन्होंने विज्ञान से संबंधित लेख भी लिखे।
अंतिम समय :-
उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 4 साल दर्द और बीमारी में बिताए। वर्ष 1937 के अंत में, वह बेहोश हो गया और काफी लंबे समय तक इस अवस्था में रहा। लगभग तीन साल बाद यह फिर से हुआ। इस दौरान जब भी वह अच्छा होते, कविताएँ लिखते। इस दौरान लिखी गई कविताएँ उनकी सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से हैं। 7 अगस्त 1941 को लंबी बीमारी के बाद उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
रविंद्रनाथ टैगोर की यात्राएं :-
1878 से 1932 तक, उन्होंने 30 देशों की यात्रा की। उनकी यात्राओं का मुख्य उद्देश्य उनकी साहित्यिक रचनाओं को उन लोगों में फैलाना था जो बंगाली नहीं समझते थे। प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि विलियम बटलर येट्स ने “गीतांजलि“ के अंग्रेजी अनुवाद के लिए प्रस्तावना लिखी। उनकी अंतिम विदेश यात्रा 1932 में सीलोन (जो की अब श्रीलंका में हैं) की थी।
साहित्य :-
ज्यादातर लोग रविंद्रनाथ टैगोर को केवल एक कवि के रूप में जानते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं था। कविताओं के साथ, उन्होंने उपन्यास, लेख, लघु कथाएँ, यात्रा वृतांत, नाटक और हजारों गीत लिखे।
संगीत और कला :-
एक महान कवि और साहित्यकार, गुरु रवींद्रनाथ टैगोर एक उत्कृष्ट संगीतकार और चित्रकार भी थे। उन्होंने लगभग 2230 गीत लिखे – इन गीतों को रवीन्द्र संगीत कहा जाता है। यह बंगाली संस्कृति का अभिन्न अंग है। भारत और बांग्लादेश का राष्ट्रगान, जो रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था, इस रवीन्द्र संगीत का एक हिस्सा भी है। लगभग 60 साल की उम्र के आसपास, रवींद्रनाथ टैगोर ने ड्राइंग और पेंटिंग में रुचि दिखाना शुरू किया। उन्होंने विभिन्न देशों की शैलियों को अपनी कला में शामिल किया।
राजनीतिक दृष्टिकोण :-
रविंद्रनाथ टैगोर के राजनीतिक विचार बहुत जटिल थे। उन्होंने यूरोप के उपनिवेशवाद की आलोचना की और भारतीय राष्ट्रवाद का समर्थन किया। इसके साथ ही, टैगोर ने स्वदेशी आंदोलन की आलोचना की और कहा कि हमें आम जनता के बौद्धिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में कई गीत लिखे। 13 अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग नरसिम्हर के बाद, टैगोर ने अंग्रेजों द्वारा दिए गए नाइटहुड का त्याग कर दिया, और ‘अछूतों के लिए पृथक निर्वाचन’ के मुद्दे पर महात्मा गाँधी और अंबेडकर के बीच मतभेदों को हल करने में टैगोर की मुख्य भूमिका थी।
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