1857 की क्रांति के समय हरियाणा में दो प्रकार की रियासतें हुआ करती थी।
1. विद्रोह समर्थक रियासतें
2. अंग्रेज समर्थक रियासतें
1. विद्रोह समर्थक रियासतें :-
झज्जर :-
सन 1857 की क्रांति के समय झज्जर की रियासत अपने क्षेत्र की सबसे बड़ी रियासत थी। इसका क्षेत्रफल लगभग 1230 वर्ग मील था। सन 1845 में इस रियासत की सत्ता अब्दुल रहमान खान के हाथों में आ गई थी; जो 1857 में भी इसका मुखिया था। अब्दुर रहमान खान ने अपनी सेना को झज्जर के साथ-साथ काहनोड मैं भी रखना आरंभ किया। 8 दिसंबर 1857 को लालकिला, दिल्ली में स्थित विशेष न्यायालय के सामने नवाब झज्जर को विद्रोह के अभियुक्ति के रूप में पेश किया गया। इस सैन्य आयोग में 5 सदस्य थे; जिसकी अध्यक्षता ब्रिगेडियर जनरल चैंबर्लेन नेकी और सरकारी वकील की भूमिका डिप्टी जज एडवोकेट हैरियट ने निभाई थी।
मुकदमे की कार्रवाई विशेष सैन्य न्यायालय द्वारा 1857 से एक्ट XVI के तहत प्रारंभ हुई। नवाब की ओर से मुकदमे की पैरवी रामरिछपाल ने की लेकिन अब आपको 23 दिसंबर 1857 को लाल किले पर फांसी दे दी गई। झज्जर रियासत का दक्षिण क्षेत्र बावल, कांटी, कनीना का क्षेत्र राजा नाभा को तथा नारनौल, कोहनोड और बधवाना का शेत्र पटियाला महाराजा को दे दिया। पटौदी व बादली के क्षेत्र पर अंग्रेजों ने अपना नियंत्रण स्थापित किया।
बल्लभगढ़ :
बल्लभगढ़ की रियासत दिल्ली के दक्षिण में 21 मील की दूरी पर स्थित है। बल्लभगढ़ जी आज तक के एक और यमुना नदी थी, जबकि दक्षिण की ओर मेवात क्षेत्र व बाकी सीमा अंग्रेजी राज्य से मिलती थी। सन 1842 में नहरसिंह को बालिग घोषणा करते हुए उसकी माता देवकुंवर तथा लॉर्ड एलनब्रो ने उसे शासन संबंधित निर्णय लेने का अधिकार दे दिया। लंबे संघर्ष के बाद 6 दिसंबर, 1857 को नाहर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 6 दिसंबर, 1857 को राजा नाहर सिंह को चांदनी चौक कोतवाली में बंदी बनाया गया। 8 दिसंबर को उसे लाल किले के अस्तबल क्षेत्र स्थित अंधेरी कोठरी में डाल दिया गया तथा 19 दिसंबर, 1857 को दोनों हाथों व पैरों में हथकड़ी व बेड़ियां डाल कर लाल किले के ‘दीवान-ए-आम’ में पेश किया गया। राजा नाहर सिंह का वकील आर.एम. कोहिणी था। राजा नाहर सिंह को दिल्ली के चांदनी चौक में 9 जनवरी, 1858 को फांसी की सजा दे दी गई। उसी दिन उनका जन्मदिन भी था।
फर्रूखनगर :-
सन 1857 की क्रांति के समय फर्रूखनगर एक छोटी रियासत थी। फरूख नगर की स्थापना बरिस्पुर के एक बलोच सरदार दलेल खान के द्वारा फर्रूखसियर के काल में की गई थी। मुगल बादशाह फर्रूखसियर ने दलेल खान को “फौजदार खान” की उपाधि दी। अहमद अली गुलाम खां सन 1850 में फर्रूखनगर का नवाब बना। 1857 की क्रांति के समय यही नवाब सत्ता में था।
फर्रूखनगर रियास पर भी 20 सितंबर, 1857 के बाद सरकार द्वारा कठोर कार्रवाई का निर्णय लिया गया। ब्रिगेडियर जनरल शवर्ज़ ने 2 अक्टूबर को दिल्ली से निकलते ही गुड़गांव पर आक्रमण किया। नवाब अहमद अली गुलाम खां को 22 अक्टूबर, 1857 को गिरफ्तार कर लिया गया तथा उसे चांदनी चौक की कोतवाली में रखा गया। 12 जनवरी, 1858 को नवाब को अभियुक्त के रूप में पेश किया गया। इस सैन्य आयोग की अध्यक्षता ब्रिगेडियर जनरल शवरज ने की जबकि चेंबर लेन वाले सैन्य आयोग को बहादुरशाह जफर का मुकदमा दे दिया गया। नवाब अहमद अली खान के मुकदमे की कार्रवाई भी लाल किले में हुई। 23 जनवरी, 1858 को शाम 6:00 बजे चांदनी चौक की कोतवाली में नवाब को फांसी दे दी। झज्जर, बल्लभगढ़ और फरुखनगर के नवाबों को फांसी दिए जाने के बारे में नवंबर, 1928 को प्रकाशित “चांद” पत्रिका का ‘फांसी अंक’ विशेष प्रकाश डालता है।
बहादुरगढ़ :-
बहादुरगढ़ क्रांति के समय एक छोटी सी रियासत हुआ करता था। इस रियासत में बहादुरगढ़ से चरखी दादरी के आसपास का क्षेत्र शामिल था। बहादुरगढ़ का पुराना नाम सराफाबाद था। 11 मई की घटनाओं के बाद दिल्ली पर बहादुरशाह जफर की सत्ता स्थापित हो गई। 20 सितंबर, 1857 के बाद स्थिति बदली तथा अन्य स्थानीय नवाबों की भांति नवाब बहादुरगढ़ को भी गिरफ्तार कर लिया गया। नवाब की मृत्यु 1866 ईसवी में लाहौर में हो गई।
2. अंग्रेज समर्थक रियासतें :
लोहारू : –
लोहारों रियासत राजपूताना की बीकानेर वह जयपुर रियासत के बीच 225 वर्ग मील में फैली हुई थी। अमीनुद्दीन का पालन- पोषण अंग्रेजों के संरक्षण में लेडी कॉलब्रुक के द्वारा किया गया। वह आरंभ से ही अंग्रेजों के समर्थक व वफादार था। सन 1857 की क्रांति के प्रारंभ होते ही उसने अंग्रेजों से पत्राचार प्रारंभ कर दिया था। नवाब बहादुरशाह जफर से भी संपर्क बनाया।
छछरौली (कलसिया) :-
वर्तमान समय में हरियाणा के उत्तरी क्षेत्र के यमुना नदी के साथ जुड़े क्षेत्र में यह रियासत थी। 1842 ईसवी में इसके गांव की कुल संख्या 340 तथा वार्षिक आमदनी तीन लाख रुपए से अधिक थी। 1857 की क्रांति के समय शोभा सिंह ने अंग्रेजों का पूरा साथ दिया। अंबाला-शिमला म्हारा को सुरक्षित करने के अतिरिक्त अंबाला में उसने सैनिक भेजें। उसने जगाधरी क्षेत्र के साहूकारों से कर्जा लेकर अंग्रेजों को दिया। शोभासिंह के पुत्र लहनासिंह ने अंग्रेज सेना के साथ मिलकर कई अभियान चलाएं। शोभासिंह की सेवाओं के बदले सरकार ने उसे कई तरह के इनाम तथा सम्मान दिए। शोभासिंह की मृत्यु फरवरी, 1858 ईस्वी में हो गई थी।
पटौदी :-
दिल्ली से जयपुर मार्ग पर रोहतक व गुरुग्राम जिले के मध्य क्षेत्र में यह रियास थी। दिल्ली के आसपास की रियासतों में पटौदी ने ही बहादुरशाह जफर का साथ नहीं दिया था। जनता क्रांतिकारियों का समर्थन करना चाहती थी इसीलिए रिसालदार मोहम्मद खान के नेतृत्व में विद्रोही हो गए। उन्होंने नवाब के पुत्र तफी अली खान को बंदी बना लिया, जिसे सैनिक कार्यवाही के बाद छुड़वाया जा सका। नवाब को पटौदी छोड़कर नारनौल भागना पड़ा।
कुंजपुरा :-
यह स्थान करनाल से पूर्व में यमुना नदी की ओर था। सन 1857 की क्रांति के समय नवाब हर तरह से अंग्रेजों के साथ था। नवाब को थानेसर व इसके आसपास का क्षेत्र दिया गया। उसके बाद थानेसर में पहेवा तक के मार्ग की जिम्मेदारी दी गई।
दुजाना :-
दुजाना झज्जर जिले के बेरी से लगभग 6 किलोमीटर तथा दिल्ली से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव है। दुजाना गांव का संबंध दुर्जन शाह नामक संत से जुड़ा है। सन 1803 व 1805 में यहां के शासक ने अंग्रेजों की सहायता की; जिस कारण यह रियासत बन गई। सन 1850 इसे रियासत का नवाब डूडे खां बना। सन 1857 की क्रांति के समय वह अंग्रेजों का सहयोगी बना रहा।
करनाल :-
1847 में अंग्रेजों द्वारा करनाल के लगान को फिर से निर्धारित किया गया तथा 1856 ईस्वी में मंडल भाइयों को नाममात्र का लमा नवाब बना दिया गया। सन 1857 की क्रांति के समय अहमद अली खान करनाल का नवाब था।
सांपला :
यह क्षेत्र रोहतक-बहादुरगढ़ के बीच है। सन 1857 ईस्वी में इस जागीर का मुखिया मिर्जा इलाही बख्श था। वह दिल्ली में रहता था। वह बहादुरशाह जफर की पत्नी जीनत महल का पिता था। 1857 की क्रांति को असफल करने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। वह क्रांति के प्रारंभ में अंग्रेजों का मुखबरी था।
3. पड़ोसी रियासतें :-
कुछ पड़ोसी रियासतें ऐसी थी, जिनकी हरियाणा क्षेत्र में बहुत अधिक भूमिका थी। इन रियासतों के शासकों के सहयोग के कारण हरियाणा क्षेत्र में अंग्रेज फिर से स्थापित हो गए। इन रियासतों की 1857 की क्रांति में भूमिका का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है।
पटियाला :-
इस रियासत का उत्तरी हरियाणा क्षेत्र में काफी विस्तार था। जींद रियासत के साथ उनके परिवारिक संबंध थे। कैथल व अरनौली रियासत भी इसकी समर्थक थी। 1857 की क्रांति के आरंभ होते ही राजा स्वयं 12 मई, 1857 को अंबाला पहुंच गया। उसने अंबाला से सोनीपत तक का क्षेत्र सुरक्षित करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी।
नाभा :-
नाभा की पटियाला समीपर्ती रियासत थी। जींद की रियासत से इसके संबंध कभी मधुर नहीं रहे। अंग्रेजों के साथ भी उसका तनाव था, इसीलिए उसकी पेंशन में कटौती की गई थी।
बीकानेर :-
बीकानेर रियासत मुख्यत: पश्चिमी हरियाणा क्षेत्र के साथ लगती थी। मई के अंतिम सप्ताह में इस क्षेत्र में क्रांति की ज्वाला फूटी। हांसी व हिसार के जीन अंग्रेजों की जान बची, वे सभी बीकानेर रियासत में राजगढ़ नामक स्थान पर पहुंचे। उनमें स्किनर भी शामिल था। पश्चिमी हरियाणा क्षेत्र की क्रांति के दमन में बीकानेर रियासत की भूमिका सबसे अधिक थी।
जयपुर :-
जयपुर रियासत की भूमिका दक्षिण हरियाणा के संदर्भ में अधिक थी। क्रांति के प्रारंभ में जब गुड़गांव, मेवात व अहीरवाल में घटनाएं घट रही थी तो अंग्रेजों के लिए जयपुर सुरक्षित स्थान बना। वह स्वयं जयपुर में पोलिटिकल एजेंट था।
राष्ट्रीय आंदोलन में हरियाणा की भूमिका : हरियाणा में 1857 की क्रांति 10 मई को अंबाला की छावनी से आरंभ हुई थी। उस समय पंडित नेकी राम शर्मा हरियाणा में होमरूल लीग के प्रमुख नेता थे।
ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध प्रमुख विद्रोह
विद्रोह वर्ष नेतृत्वकर्ता
जींद का विद्रोह 1814 प्रताप सिंह
छछरौली का विद्रोह 1818 जोधा सिंह
रानिया का विद्रोह 1818 जाबित खां
बनावली का विद्रोह 1835 गुलाब सिंह
कैथल का विद्रोह 1843 गुलाब सिंह, साहिब कौर
लाडवा का विद्रोह 1845 अजीत सिंह
किसानों का विद्रोह
(रोहतक, हिसार, गुरुग्राम) 1824 सूरजमल
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