हरियाणा का उदय – Rise of Haryana

सबसे पहले सन् 1926 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के दिल्ली अधिवेशन में स्वागत समिति के सदस्य पीरजादा मोहम्मद हुसैन ने हरियाणा क्षेत्र को पंजाब से काटकर दिल्ली में मिलाने की मांग उठाई थी। अतः किसी भी सही ढंग से ली गयी प्रांतों के पुनर्निर्माण की योजना में यह उचित ही होगा कि यह क्षेत्र (अंबाला डिवीजन) पंजाब से काटा जाये। गांधी जी ने इस योजना को अपना आशीर्वाद दिया।

हरियाणा एक पृथक राज्य :-

15 अगस्त 1947 को जब भारत अंग्रेजी हुकूमत कि करीब 200 सालों की दास्तां से आजाद हुआ, तब हरियाणा पंजाब प्रांत का भाग था। पंजाब के मुख्यमंत्री भीमसेन सच्चर के शासनकाल के दौरान 1949 ई. में तत्कालीन पंजाब प्रांत के भाषा के प्रश्न पर विरोध उत्पन्न हो गया। हिंदी भाषी क्षेत्रों में पंजाबी पढ़ाने का निरोध हुआ। परिणाम स्वरूप इस समस्या के समाधान हेतु एक फार्मूला बनाया गया, जिसे “सच्चर फार्मूला” कहा जाता है। 1 अक्टूबर 1949 को इस फार्मूले को लागू किया गया। अप्रैल 1955 में प्रदेश की सीमा निर्धारित करने हेतु रोहतक आए आयोग के समक्ष हरियाणा के कांग्रेसी विधायकों ने पृथक हरियाणा राज्य की मांग रखी तथा इस संदर्भ में एक शिष्ट मंडल द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी मुलाकात की गई। पंजाब में केरोसिंह के शासनकाल (1956 से 1964) के दौरान ही पृथक हरियाणा राज्य की मांग उठने लगी।

पंजाबी सूबे की मांग :-

अब तक पंजाबी सूबे की मांग नहीं खड़ी हुई थी पर सन 1948 में अचानक मास्टर तारा सिंह ने अपने पत्र “अजीत” में पंजाबी सूबा से भी एक कदम आगे “सिक्ख राज्य” की मांग की। कम्युनिस्ट पार्टी पेप्सू ने अकाली दल की मांग का मखोल उठाते हुए पंजाबी सुबह की मांग उठाई, जो काफी लोगों को पसंद आई।

सच्चर फार्मूला :-

पंजाबी और हिंदी भाषाई प्रांतों में गठन की बात जब अनसुनी हुई तो लोगों ने एक अन्य समस्या खड़ी कर दी। पंजाबी भाषी लोगों ने कहा कि वे हिंदी नहीं पढ़ेंगे और ना ही प्रयोग में लाएंगे। ऐसा ही हिंदी भाषी लोगों ने पंजाबी के विषय में कहा। क्योंकि यह हल पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री भीमसेन सच्चर के द्वारा निकाला गया था, अत: यह “सच्चर फार्मूला” के नाम से जाना जाने लगा।
‘सच्चर फार्मूला’ 1 अक्टूबर 1949 को लागू हुआ। इस फार्मूले के अनुसार पंजाब को दो क्षेत्रों में बांट दिया गया –

  1. पंजाबी क्षेत्र                        2. हिंदी क्षेत्र

हिंदी क्षेत्र में रोहतक, गुड़गांव, करनाल, कांगड़ा, हिसार (घग्गर नदी के दक्षिण के भाग) के जिले और अंबाला की जगाधरी और नारायणगढ़ तहसीलें रखी गई और पंजाबी क्षेत्र में शेष बना सारा क्षेत्र। पंजाबी क्षेत्र में सरकारी भाषा पंजाबी (गुरमुखी लिपि में) और हिंदी चित्र में हिंदी (देवनागरी लिपि में) तय हुई। फार्मूले के अनुसार हिंदी क्षेत्र में प्री-यूनिवर्सिटी कक्षा तक पढ़ाई हिंदी के माध्यम से होनी निश्चित हुई और गैर सरकारी स्कूलों में शिक्षा का माध्यम स्कूलों के संचालकों की मर्जी के अनुसार कोई भी भाषा हो सकती थी। हिंदी क्षेत्र के हर स्कूल में पंजाबी और पंजाबी क्षेत्र में हिंदी को द्वितीय भाषा के रूप में पढ़ाया जाना जरूरी था। पेप्सू सरकार ने भी अपने राज्य में ऐसा ही फार्मूला लागू कर दिया।
‘सच्चर फार्मूला’ जनता को पसंद नहीं आया। विशेष रूप से हिंदी क्षेत्र में यह अत्यधिक बदनाम हुआ। ‘हम पंजाबी को अनिवार्य रूप से क्यों पढ़ें’ ऐसा कहकर लोगों ने इसका विरोध किया। अतः सच्चर फार्मूला शुरू से ही असफल हुआ।

हिंदी तथा पंजाबी क्षेत्र :-

हिंदी क्षेत्र : हिसार, रोहतक, गुड़गांव, करनाल, अंबाला (अंबाला, जगाधरी, नारायणगढ़, तहसीलें), शिमला और कांगड़ा।
पंजाबी क्षेत्र : होशियारपुर, जालंधर, लुधियाना, फिरोजपुर, अमृतसर, गुरदासपुर, अंबाला (रोपड़ और खरड़ तहसीलें), पटियाला, बरनाला (अब संगरूर में), भटिंडा, कपूरथला, फतेहाबाद साहिब (अब पटियाला जिले में) संगरूर (सुनाम और संगरूर तहसीलें)।

राज्य पुनर्गठन आयोग :-

29 दिसंबर 1953 में भारत सरकार ने भाषा तथा संस्कृत के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने हेतु सैयद फजल अली के सभापतित्व में एक आयोग का गठन किया। इसीलिए यह आयोग “फजल अली आयोग” के नाम से भी जाना जाता है। इस आयोग में सन 1956 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। फलत: पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट से हरियाणा और पंजाब दोनों को ही बड़ी निराशा हुई।
भारतीय संविधान में संशोधन होने के पश्चात राष्ट्रपति की आज्ञा से 24 जुलाई 1956 को पंजाब सरकार ने उक्त क्षेत्रीय फार्मूला राज्य में लागू कर दिया। सन 1957 में प्रताप सिंह कैरों ने जो उस समय मुख्यमंत्री बन गए थे, इस योजना को पूरी तरह सफल होने के अवसर नहीं दिए। परिणाम स्वरूप क्षेत्रीय योजना असफल हो गई।

क्षेत्रिय फार्मूला :-

सन 1556 में प्रस्तुत की फजल अली आयोग की रिपोर्ट में पंजाब प्रांत को ज्यों का त्यों रखा गया क्योंकि आयोग का मानना था कि नए राज्यों के गठन में भाषा विवाद समाप्त नहीं होगा, अपितु दोनों भाषाओं का अहित होगा। अप्रैल 1956 में केंद्र सरकार द्वारा क्षेत्रीय फार्मूला लागू करके पंजाब प्रांत को पंजाब एवं हरियाणा दो क्षेत्रों में विभाजित कर दिया गया।

A हिंदी क्षेत्र :

हिसार, रोहतक, गुड़गांव, करनाल, अंबाला जिले की अंबाला, जगाधरी, नारायणगढ़, तहसीलें, महेंद्रगढ़ जिला, पटियाला जिले का कोहिस्तान क्षेत्र, जींद से नरवाना तहसीलें, शिमला एवं कांगड़ा जिले हिंदी क्षेत्र में शामिल किए गए।

B पंजाबी क्षेत्र :

पंजाब का शेष भाग “पंजाबी क्षेत्र” घोषित किया गया। 24 जुलाई 1956 को इस क्षेत्रीय फार्मूले को लागू कर दिया गया। सन 1957 में पंजाब में हिंदी आंदोलन हुआ जिससे वहां के लोगों में पंजाबी क्षेत्र की पृथक पहचान की भावना जागृत हो गई। सन 1960 में सिखों के नेता मास्टर तारा सिंह ने पंजाबी सूबे के लिए आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। पुन: सन 1965 में संत फतेहसिंह द्वारा पंजाब सूबे की स्थापना हेतु किए गए अनशन एवं आंदोलन तथा हरियाणा के सभी वर्गों द्वारा केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार से की गई अपील के परिणाम स्वरूप 23 सितंबर 1965 को लोगों के दबाव में सरकार ने विभाजन के लिए सरदार हुकमसिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी के फैसले को सही मानते हुए भारत के गृह राज्यमंत्री ने संसद के दोनों सदनों में पंजाब के पुनर्गठन के संबंध में संसदीय समिति के गठन संबंधी निर्णय की घोषणा कर दी थी।
हुकम सिंह कमेटी की सिफारिशों को मानते हुए सरकार ने 23 अप्रैल 1966 को जे.सी. शाह की अध्यक्षता में एक ‘सीमा आयोग ‘ का गठन किया गया। आयोग द्वारा 23 मई 1966 को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया तथा हरियाणा में निम्नलिखित क्षेत्रों को सम्मिलित किए जाने हेतु संस्तुति की गई। हिसार, महेंद्रगढ़, गुड़गांव, रोहतक, करनाल जिले, जींद तहसील, चंडीगढ़ सहित खरड़ तहसील, नारायणगढ़, अंबाला एवं जगाधरी तहसीलें।
आयोग की संस्तुति के अनुसार ‘पंजाब पुनर्गठन विधेयक’, 1966 कि लोकसभा द्वारा 18 सितंबर 1966 को पारित कर दिया गया तथा एक नंबर 1966 को एक पृथक हरियाणा राज्य के रूप में हरियाणा की स्थापना हुई। श्री धर्मवीर को राज्य का प्रथम राज्यपाल नियुक्त किया गया।
कांग्रेस पार्टी से बाहर आए कांग्रेस विधायकों द्वारा नवगठित हरियाणा विधानसभा में पंडित भगवतदयाल शर्मा को अपना नेता चुनने के बाद प्रदेश का प्रथम मुख्यमंत्री बनाया गया।

संत फतेहसिंह का व्रत :-

सन 1565 में संत फतेहसिंह ने पंजाबी सूबे की खातिर पुन: व्रत रखने का ऐलान कर दिया। इस बार उनका व्रत पहले से भिन्न था। अब ‘यदि सरकार ने बात नहीं मानी तो 15 दिन बाद उनका जल मरने का प्रोग्राम था,’ लेकिन तभी भारत – पाकिस्तान युद्ध हो गया अत: फतेह सिंह ने राष्ट्रीय संकट को देखते हुए अपना व्रत स्थगित कर दिया। भारत – पाकिस्तान युद्ध के बाद, 10 अगस्त 1965 को संतजी ने अकाल तख्त के सामने व्रत का पुण्य ऐलान किया। अब जल मरने की तारीख 25 दिन बाद यानी 10 सितंबर 1965 रखी गई।

पुनर्गठन प्रस्ताव स्वीकार :-

3 मार्च 1966 को चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में ‘हरियाणा संघर्ष समिति’ ने एक बार पुन: संत से भेंट की। हुकम सिंह समिति ने पंजाब का गठन स्वीकार किया और साथ ही समिति ने यह भी सिफारिश की कि पुनर्गठन के लिए सीमा आयोग बनाया जाए। परिणाम  स्वरूप समिति की सिफारिश के अनुसार भारत सरकार 23 अप्रैल 1966 को एक तीन सदस्य सीमा आयोग का गठन हो गया। इस आयोग के सदस्य थे – जस्टिस जे.सी. शाह ( सभापति ), श्री एस. दत्त और श्री एम. एम. फिलिप। आयोग ने सब प्रकार के तथ्यों तथा दलीलों का गंभीर रूप से अध्ययन करके, 31 मई, 1966 को अपनी रिपोर्ट पेश कर दी। रिपोर्ट के अनुच्छेद 135 (3) के अनुसार नवनिर्मित हरियाणा प्रदेश में निम्नलिखित क्षेत्रों के शामिल होने की सिफारिश थी –
जिला हिसार, महेंद्रगढ़, गुड़गांव, करनाल, जिला संगरूर व नरवाना तथा जींद तहसीलें, अंबाला जिले की खरड़ (चंडीगढ़ सहित), नारायणगढ़, अंबाला और जगाधरी तहसीलें।
श्री एस. दत्त ने आयोग की यह सिफारिश स्वीकार नहीं की कि खरड़ तथा चंडीगढ़ हरियाणा में शामिल हों।

हरियाणा में प्रतिक्रिया :-

संत फतेहसिंह के व्रत की हरियाणा में बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। 23 सितंबर, 1965 को गृह राज्य मंत्री ने भारतीय संसद के दोनों सदनों में पंजाब के पुनर्गठन के प्रशन के संबंध में सदस्यएं समिति के गठन संबंधी सरकार के निर्णय की घोषणा की। इसके तुरंत बाद हुकम सिंह की अध्यक्षता में इस काम के लिए संसदीय समिति का गठन हुआ, जिसने समस्या के सब पहलुओं पर गंभीरता से विचार किया।

नये राज्य का उदय :-

आयोग की सिफारिशों के अनुसार भारत सरकार ने पंजाब पुनर्गठन विधेयक (नंबर 31, 1966) 18 सितंबर 1966 को पारित कर दिया। विधेयक के भाग-2 में सीमा आदि की व्याख्या की गई जो इस प्रकार थी –
1. निश्चित दिन से एक नए राज्य का निर्माण होगा जोकि हरियाणा कहलाएगा, जिसमें पंजाब के निम्न क्षेत्र शामिल होंगे।
(a) हिसार रोहतक गुड़गांव करनाल और महेंद्रगढ़ के जिले
(b) संगरूर जिले की नरवाना और जींद तहसीलें
(c) अंबाला जिले कि अंबाला, जगाधरी और नारायणगढ़ तहसीलें
(d) अंबाला जिले के घर तहसील का पिंजोर कानूगो सर्कल
(e) अंबाला जिले की खरड़ तहसीलें के मनीमाजरा के कनूंगो सर्कल या चित्र जो प्रथम परिच्छेद में अनुसूचित हैं
2. उप-अनुच्छेद (b) में वर्णित क्षेत्र से हरियाणा राज्य के अंतर्गत जींद नाम का पृथक जिला बनेगा।
3. उप-अनुच्छेद (e) में वर्णित क्षेत्र नारायणगढ़ तहसील के अंतर्गत पिंजोर के कानूनी सर्कल का भाग होगा।
इसके अनुच्छेद साथ में राज्यसभा के मौजूद 11 सदस्यों की बांट और अनुच्छेद 8 में उनके चुनाव आदि का तरीका सुझाया गया है।
अनुच्छेद 9 में लोकसभा के सदस्यों की स्थिति के विषय में बताया गया है। अनुच्छेद 10 की राज्य की मौजूदा विधानसभा के सदस्यों को बांटा गया जिसमें से 54 सदस्य हरियाणा से चुनकर गए थे वह हरियाणा के हिस्से में रखे गए। अनुच्छेद 14 (2) ने हरियाणा के सदस्यों द्वारा अपनी इस विधानसभा का अपने में से, संविधान में बताए गए तरीकों से एक अध्यक्ष चुनने की व्यवस्था की गई है।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद 21 था, जिसमें कहा गया था कि “पंजाब और हरियाणा की सांझी हाईकोर्ट होगी।” इस विधेयक के अनुसार, 1 नवंबर 1966 को हरियाणा राज्य के रूप में एक नए राज्य का उदय हुआ।
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