हरियाणा मृदा एवं उसके गुण
हरियाणा प्रांत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 4.4 मिलियन हेक्टेयर है जबकि 3.8 मिलियन हेक्टेयर ही खेती योग्य हैं। हरियाणा का ढलान उत्तर से दक्षिण की तरफ है जो समुद्र तल से 200 से 900 मीटर ऊंचाई पर है किंतु कुछ ढलान इसके विपरीत भी है जो अरावली पहाड़ियों की वजह से उत्तर और दक्षिण पूर्व की तरफ है।
मृदा के भौतिक – रसायनिक एवं उर्वरक गुणों के आधार पर हरियाणा की मृदा को निम्नलिखित 6 भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. अति हल्की मृदा (Very Light Soil) : यह मृदा बालुका प्रधान दोमट मृदा है। इसमें चुने के अंशों की बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है। यह मृदा सिरसा जिले के दक्षिणी भाग में और फतेहाबाद, हिसार और महेंद्रगढ़ जिलों में पाई जाती है। आमतौर पर यह मृदा शुष्क प्रदेश में होती है और इसमें वनस्पति का अभाव रहता है। इस मृदा के कण भी असंगठित होते हैं। इसमें वायु अपरदन भारी मात्रा में होता है। इस मृदा के क्षेत्र में बालूका स्तूपों की प्रधानता है। यह मृदा बहुत जल्दी सूख जाती है और इसमें जल ग्रहण करने की ताकत भी सीन होती है। कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लक्ष्य से सरकार इस क्षेत्र में शुष्क कृषि को बढ़ावा दे रही है।
2. हल्की मृदा (Light Soil) :
इस मृदा में अपेक्षाकृत बालू दोमट और दोमट मृदा शामिल हैं यह मुख्यत: दो प्रकार की होती है –
a) अपेक्षाकृत बालू दोमट मृदा (Relatively Loam Soil) : बालुका दोमट मृदा को यहां रोस्ली भी कहते हैं। यह मृदा दक्षिण-पश्चिम हरियाणा में बालू का युक्त दोमट मृदा तथा दोमट मृदा के मध्य एक बेटी के रूप में विस्तृत है। यह मृदा मुख्यत: हिसार, भिवानी, रेवाड़ी, गुड़गांव तथा झज्जर जिलों में पाई जाती है। इस मृदा से सिल्ट तथा मृतिका की अपेक्षा बालू की प्रधानता होती है। इस मृदा में जल धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है। अतः यह मृदा शुष्क भूमि कृषि के लिए उत्तम मानी जाती है। हल्की वर्षा होने पर अथवा कोहारा सिंचाई या टपकने सिंचाई द्वारा इस मृदा में कृषि उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
b) बलुई दोमट मृदा (Sandy Loam Soil) : इस मृदा का विस्तार हरियाणा के पश्चिम भाग में घग्गर नदी के उत्तर में सिरसा तहसील के कुछ गांव में तथा डबवाली तहसील में है। यह मृदा नरम है। इसमें बालू, मृतिका व सिल्ट का लगभग बराबर अनुपात पाया जाता है।
3. मध्यम मृदा (Medium Soil) : मध्यम मृदा में मोटी दोमट हल्की दोमट और दोमट मृदा सम्मिलित है इसे निम्नलिखित तीन भागों में बांटा गया है –
a) मोटी दोमट मृदा : मोटे कणों की दोमट मृदा गुड़गांव जिले के मध्य पश्चिमी फिरोजपुर झिरका के क्षेत्र में पाई जाती है।
b) हल्की दोमट मृदा : हल्की दोमट मृदा मुख्यत: दक्षिण पश्चिम अंबाला तथा नारायणगढ़ तहसील के दक्षिण भाग में पाई जाती है इस क्षेत्र के अतिरिक्त वह मृदा गुड़गांव जिले के उत्तरी भाग में नो के उत्तर पश्चिम भाग में तथा मध्य रेवाड़ी में भी पाई जाती है।
c) दोमट मृदा : दोमट गहरी, सुप्रवाहित और उपजाऊ मृदा है। यह मृदा हरियाणा के मध्यवर्ती भाग में मुख्यत: जींद, सोनीपत, करनाल, कैथल, गुड़गांव तथा फरीदाबाद जिलों में पाई जाती है। यह मृदा गेहूं चावल जैसे प्रमुख खदानों तथा गन्ने व कपास जैसी मूल्यवान फसलों के लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी है।
4. सामान्यत: भारी मृदा (Moderately Heavy Soil) : यह मृदा सिल्ट युक्त होती है इसे “खादर” मृदा भी कहा जाता है। यमुना नदी के साथ-साथ के क्षेत्रों में यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत फरीदाबाद और सोनीपत जिलों के पूर्वी किनारों पर यही मृदा पाई जाती है। यह नवीन खादर भी कहलाती है, क्योंकि प्रतिवर्ष इस मृदा पर बाढ़ का पानी पहुंचता है। ऊंचे भागों में पाई जाने वाली मृदा को भांगर कहते हैं। सिल्ट की अधिकता के कारण यह मृदा गुटकामयी में हो गई है। इसमें जल धारण की क्षमता भी कम होती है भारी वह सूखने पर कठोर होने के कारण इस मृदा में हल चलाना कठिन हो जाता है।
5. भारी तथा बहुत भारी मृदाएं (Moderately Heavy Soil) : भारी मृदा में सिक्का युक्त सिल्ट की प्रधानता होती है। यह मृदा राज्य में बरसाती नदियों के किनारों पर पाई जाती है। थानेसर तथा फतेहाबाद के घाघर क्षेत्र में सोलर नामक कठोर चिका मिलती है; जबकि जगाधरी में लोहा युक्त चिका मिलती है। वर्षा के दौरान यह मृदा चिपचिपी हो जाती है तथा शुष्क मौसम में कड़ी हो जाती है। उर्वरकों के प्रयोग से इन मृदा में उत्पादन बढ़ जाता है।
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